वो जो कहीं नहीं थी फिर भी हरजगर थी
नाउम्मींद भी और हसरत दिदार की थी
---रेखा शुक्ला
आखरी मेरी आह हैं अगर तुम्हैं कुबुल हैं
साया बनके पीछे चला नजरे झूका गई
उठी नजर ह्सी आंखे प्यार समजा गई
कयामत यु ढली कफन ओढे जन्नत सोई
----रेखा शुक्ला
तेरी नजरों का असर हैं, मुज पे बेकाबु
शरीफ दुआ मे, मिले तो रहे तु बेकाबु
---रेखा शुक्ला
नाउम्मींद भी और हसरत दिदार की थी
---रेखा शुक्ला
आखरी मेरी आह हैं अगर तुम्हैं कुबुल हैं
साया बनके पीछे चला नजरे झूका गई
उठी नजर ह्सी आंखे प्यार समजा गई
कयामत यु ढली कफन ओढे जन्नत सोई
----रेखा शुक्ला
तेरी नजरों का असर हैं, मुज पे बेकाबु
शरीफ दुआ मे, मिले तो रहे तु बेकाबु
---रेखा शुक्ला