શનિવાર, 21 જાન્યુઆરી, 2012

ये दुनिया...ये दुनिया...!!!!

थंड बर्फमें धकेले गर्म-सांसोकी ये दुनिया
चाहतकी आग इश्कमें जलाये ये दुनिया...
रिश्ते लहुके आये पास तो छुट जाये ये दुनिया
बांधे बंधनमें हमें फिरभी फानी ये दुनिया....
आया है लाडले कैसी सुहानी ये दुनिया....
तखल्लुस से रास्ते पे छोड दे ये दुनिया,
तन्हाई है भीडमें अलग रुदानी ये दुनिया
लगे सच्ची हमें फिरभी ये दुनिया...
रुला-रुला के कभी हंसादे ये दुनिया
नाइंसाफी से करे इंसाफ ये दुनिया...
भरे बाजार सरे इल्झाम दे दुनिया,
अब देदे पनाह राम वर्ना छीनले दुनिया...
घर-घरमें बसे रावन हर शहर बनी लंका,
सांस कैसे ले सीया जब जीने दे दुनिया...
दिवाना कर दे दिवानों से भरी ये दुनिया
सुर लय और ताल की अलग ये दुनिया...
आदि.. अंत… और मध्य है तुं
तुजसे शुरु तुजमे ही अंत बने मेरी दुनिया......
-रेखा शुक्ल(शिकागो)