બુધવાર, 16 મે, 2018

उतु-अक्षु कुछ तो बोले..


कल्पनाको आकॄति मिले
नजरोंको नजारां तो मिले
कब तक संभल के चले ?
फिर शायद मिले न मिले
---रेखा शुक्ला