મંગળવાર, 9 ઑક્ટોબર, 2012

मुरली मनोहर से एक्बार........!!

मैं आज भी उन्की अमानत हुं.... जो मेरे दिलों दिमागो ं पर छाये हैं
अपनों के बिच भी तन्हाई हैं........... जो मेरे जी को मचला रही हैं
गर मर जांऊ तेरी याद मैं .........मेरी लाश पर उनकी ही आंखे हैं
आतें हैं कंई बार तो मिलने................ काश भोर न हो जाती हैं
साथ वो भी नहीं ले जाते हैं................ बडे बेफिक्र सोये जाते हैं
निगाहों से एक बार देख लुं........ तमन्नाये दिल मै लिये जीते हैं
ईश्क ने बरबाद किये............................. दर्दे जिगरे हाल हैं
कम्बक्त रिश्ते ने मुजे ........................मारा बार-बार..हैं..!
-----रेखा शुक्ला

तन्हां तन्हां....

आये थे तेरे दर पे उम्मिंदे आश ले कर
उठ्ठे हैं जनाजा अजी अपना ही साथ ले कर
-------रेखा शुक्ला

पेहचान क्युं ये जान हैं दिलमैं तो तेरी ही आन हैं
रेहने दे भरम ये मान हैं कद्रदानो के बिच थोडी शान हैं
-----रेखा शुक्ला

आवाझ दे दी हैं दिलने सुरत नजर ना आयें
जान गवाई हैं हमने कैसे नजर फिर आयें...?
--रेखा शुक्ला

मन्नते मानी यहां जन्नते चाही वहां
फैंसला तुमने किया...मंजीले तो पाई कहां..?
---रेखा शुक्ला

ईतना तो प्यार अजि हमसे करो, जितना प्यार तुम उन्से करो...
हमने तो प्यार अजि तुमको किया, जितना कभी भी ना हमसे किया...
---रेखा शुक्ला

समझ कर कांच का टुकडा दिल तोड आये 
सलाह देते हैं लोग और साथ छोड आये..?
----रेखा शुक्ला