શનિવાર, 30 એપ્રિલ, 2016

असर

वो जो कहीं नहीं थी फिर भी हरजगर थी
नाउम्मींद भी और हसरत दिदार की थी 
---रेखा शुक्ला


आखरी मेरी आह हैं अगर तुम्हैं कुबुल हैं
साया बनके पीछे चला नजरे झूका गई
उठी नजर ह्सी आंखे प्यार समजा गई
कयामत यु ढली कफन ओढे जन्नत सोई
----रेखा शुक्ला



तेरी नजरों का असर हैं, मुज पे बेकाबु
शरीफ दुआ मे, मिले तो रहे तु बेकाबु
---रेखा शुक्ला

કળી ખીલે

બળતી બપોર જુવે રાહ ઠંડક સાંજ ની
પ્રકૄતિ ઘખે રૂવે રાત ટાઢક પહોર ની
છેલ્લી વાર ની કળી ખીલે મુજ શ્વાસની
મૂંઝાતી ભળી રહી પ્રસૂતિ સંવેદના ની
અબોલ ને અબોધ ભીંતો રૂવે મકાનની
ટીંગાઈ ને ધૂળ ચાટે યાદો લાગણી ની
===રેખા શુક્લ

कैसे समजांउ बडे ना समज हो

तेरी नजरों का असर हैं, मुज पे बेकाबु
शरीफ दुआ मे, मिले तो रहे तु बेकाबु
---रेखा शुक्ला

कल रात जिन्दगी से मुलाकात हो गई
लब थरथरा रहे थे मगर बात हो गई