ये वक्त का है दरिया
कित्ना करोगे याद
ये राझ हैं नजारा
कितना सताओगे रोज
ये बेहते आंसु
ये रोज रोज की बातें
खुलके न मिलने की शिकायते
कितना कहोगे? तुम कोन हो
हो जिस्म से जुदा
जान से जुडे हो
कैसे कहुं... कैसे भूलुं
क्या क्या भूलु ...वो तन्हांई
वो पेहचान ....बो नजारें
वो बेनाम शहेर .....वो हम-दम
वो हर गम...
पास पास... हया और मुस्कान
साथ साथ... कब मिले ?कब बिछडे ?
आसपास ...!!
----रेखा शुक्ला