શુક્રવાર, 6 જુલાઈ, 2012

दिल के शिशे का तुटना....


बसती दिलकी लुंट जाना
जिस से आंखे चार होना
झुले पे उस्का लेटे-लेटे 
पैरों के घुंघर की आहट का सुनना
झुडे मैं गजरोंका महेंकना, 
वो मेंदी के गहेरे रंग का देखना
वो गोरे हाथों से उंगलि चबाना
उल्जी लटों को यु संवारना, 
पथ्थर सा पुत्ल मुजे देख कर
किताबों का हाथो से गिरना
दिल तो गया ,दिल तो गया..
सांसो का मिलना -महेंकना
सोचा न था खुन बहाकर वफा का बेहना
बेवफाई तेरी देख कर दिल के शिशे का तुटना
उस्के हिस्से मे रोशनी का आना,
ख्वाहिशोका खुन छोड कर जाना...
दोस्ति की तुने दुश्मनों से
देखो वो गया मेरे कातिल का जाना
देख कर के तबाही मेरी उनके
दिलका चमन का खिलना
क्यों लगाया पैड अपने आंगनमे.
फुलो कि जगा कांटे दामनमे
महोबत का क्युं  ऐसा दस्तुर का होना??
जीसे दिल चाहे दुर उसको रखना..
जरा सी लगे ठेस, दिलका चकनाचुर होना..
---रेखा शुक्ल