રવિવાર, 27 સપ્ટેમ્બર, 2015

केहती हैं माईं......

केहती हैं माईं, अबला नही हुं
दर्द  भी हुं, सुनले पुकार भी हुं

शान भी हुं, मानले आन भी हुं
शर्म कर्म धर्म, हां इमान भी हुं

राझ भी हुं, नटखटकी जान हुं
सूखी आंखका. गीला अश्क हुं

सच ना बतांऊ पर. चूपभी ना हुं
वादा हैं भाऊ, अपून साथ ना हुं
--------रेखा शुक्ला

'प्रणाली'

रिश्तों को राजनीति ने बदल डाला
 और 
राजनीति ने रिश्तों को बदल डाला  
उपर से 
इसे देखो 'प्रणाली'  केह डाला ...!!
----रेखा शुक्ला

नझ्म की शकल हसीन

धीरे धीरे से मेरी जिंदगी एक दिन पे खत्म हैं
सांस से जैसे साझ मिले तिरंगी पे कुरबान हैं
----रेखा शुक्ला

નઝ્મ કી શકલ હસીન
ધીરે ધીરે સે મેરી જિંદગી એક દિન પે ખત્મ હૈ
સાંસ સે જૈસે સાઝ મિલે તિરંગી પે કુરબાન હૈ
-----રેખા શુક્લ

मास्टरजी पू्छे आज बडी देर से हैं आये...?

हां , हु गुमशुदा जिसने पाला-पोसा इसी जन्म में ही छोड चले हैं अचानक मास्टरजी क्या करुं? 
सांस हैं फूली, एक ही झटके मे पंखी का आशियाना बिखर गया...हा, मास्टरजी आज मै देर से हुं आया...
गया था लेने दवाईयां पर उससे पेहले वो चल बसी...पिताजी ने देखते ही मेरे सामने दम तोड दिया 
और मैं अवाक खडा...हाथ से ना छूटी दवाईयां पर हाथ मे ही फूट गई शींशियां..
देखीये ना मास्टरजी लहु बेहता रहा पर मैं समजा नहीं क्युं ? और हां, देदो ना वजूद अब मेरी सांसो को मास्टरजी....
हां मैं आज बडी देर से हुं आया...!!
---------रेखा शुक्ला

मेरे सांवले

लम्हें रोकलो, नैनो मे झांकलो ना
पियु पियु दिल बोले, मानलो ना
सुद-बुद हैं खोई मैंने, मेरे सांवले

पलके बुंदन बुंदन मगन मानलो ना
दूरियां न सहे वजूद कहु जानलो ना
जिंदगी का चैन करारा, मेरे सांवले
---रेखा शुक्ला