बादल से फुरबाईका लेके नाता
सुनाते फुल दबी मिठी वो बाता
सिने मे फुलोंके आग है भाता
चुपके से भेद खोले ही जाता
रोशनी से धुंआ चरागे उठ्ता
नुरे-खुशियांसे आसमां हिलता
शामिल ख्वाब मेहफिले झुमता
रस्म उल्फत ना परवा करता
---रेखा शुक्ला