घरमें सबको अरछी लगती थी खीर-पुरियां
और गरम पकोडें हां खट्टी-मीठी चटनी थी
दादी बनाती मेह्सुब और किश्मिशवाले लड्डु
घुघरा-मिठाई और चेवडा भी ...!!!
दर्जी घरमें बैठके करता था सिलाई....!!!
नयें कपडें और फटाके..रोज मिलती मिठाई...!!!
घंटा बजाते पुजारी केहता"जागो" सबरस देके जाता....!
मंदिर जाके भैया लगाता टिका और कुमकुम लगाती मैया
अम्मा संग मैं लगा देती रंगोली और साफ-सुतरा आंगन
दिनभर सबका मिलना झुलना सबके मुंह पे खुशियां थी
आशिष मिलती सदा नई नोट रुपये भी बटवे मे छुपाना
गजरावाली लम्बी चोटीयां स्कर्ट को चुम झुमती थी
मैं मतवाली जबजब निकलु पडोशी किवांडसे झांके
पांच दिनकी दिवाली और चार दिन की चांदनी !
भारतकी याद दिलाती हां, नैनोके दीप दिवाली !
---रेखा शुक्ला