શનિવાર, 12 ઑક્ટોબર, 2013

असुल का गला घौंट चले

लहेरोंको चिर के आगे चलते वक्त बेअदब असुल का गला घौंट चले
किनारोंपे आके आगे रोना मना हैं देखी हंसी तो जीके अब हम चले
---रेखा शुक्ला
खामोशीमें तन्हाई कैसी गुलाब और कांटे की सगाई
सपनोंमें गुमसुम रंग भरी सांसोमें हमतुम की सगाई
--रेखा शुक्ला

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