दर्द को सिनेसे लगाया है
इश्क से जीनेको जताया है
जजबात मे नजरोने रुलाया है
रुस्वत ने परिंदे मिलाया है
उल्फत मे मायुसी ने गंवारा है
मौत ने जिंदगी मे संवारा है
--रेखा शुक्ला
दिल करके घायल हो जायेगा ओझल शामिल करके पागल...
एक दिन फिर बिक जायेगा माटी के मोल फुलों के रंगसे पागल...
....रेखा शुक्ला
पिया .....
बांहोंमें बांहे डालके चलने का मौसम आ गया ...
बांहोंमें बांहे डालके चलने का मौसम आ गया ...
ये बारिश भीगाती उपरसे तन्हाई रुलाती...
जब उनकी याद आती तो जान से जान जाती...
कैसे करु व्यक्त शब्द क्या क्या कहे ?
....रेखा शुक्ला
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