शेश हु विशेष हु तेरा एक अंश हु,
मेघ हु मल्हार हु ब्र्ह्मांड्का सारांश हु... हा मै माया हु...
विश्वका आभास हु, दर्द की खाराश हु,
साया हु जुडी बुंदकी आश हु... हा मै माया हु...
लहेरो की छिप हु, दरिया की खास हुं
चुम कर गगन आझाद साक्षात प्यास हु.. हा मै माया हु...
चन्द्र हु सुरज हु पर तारो की सांस हु
मन उज्वला तन पानी की मिठास हु.... हा मै माया हु...
अलंकार हु आभुषण हु सादगी का राझ हुं
नम्र हुं वज्र हु कंचन से आभास हु... हा मै माया हु...
----रेखा शुक्ला ११/०२/२०१२
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