શુક્રવાર, 2 નવેમ્બર, 2012

गमको ही मारदो........


समयकी ट्रेन आके सफर मुकाम का कराये
एक छुटे एक आये मुकाम याद दिलाये...
मैं बिछडी अपने आपसे मुरझाई फुल की तरहा
याद मंदिरके चौबारे चुभ्ते कांटोमे गुलाबकी तरहा
हस कर गले लगालो गमे अश्क की तरहा...
किस किस ने गमको मारा इस गमको ही मारदो
हरमोड मै दिलमे मेह्मान बनके आये
आरजु छोटी ये जींदगी बडी लम्बी रंजिश 
दूर से हि सही इस गमको ही मारदो
सामने खुशी पडी आवाज देके मारदो
जमाने ने नसीबोके हवाले कर दिया तुमको
जहां चाहे जीधर चाहे पकड कर हाथ ले जाये
पागल दिवाने जा इस गमको मारदो
कहां देखो आंखे ...कहां बादल
मगर दिल मै आती है ये... बहोत रोये
चुराकर घर मे बरसात ले आये....
मेरी गली से ना गुजर दिवाने गमको मारदो
कजरों ने भेजा प्यार दिल ने सलाम भेजा
उल्फतमैं दिल ने दिलको भेजा पयाम मारदो 
-------रेखा शुक्ला २०१२

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