કાલ્પનિક દુનિયામાંથી વસ્તવિકતાની ધરતી પર રૂમઝુમ ચાલે ચાલતી મારી કવિતા નવોઢા બની શરમાય છે....
आग को खेल पतंगो ने समज रख्खा हैसब को अंजाम का हो डर ये जरूरी तो नहींउम्र जल्वों में हो बसर ये जरूरी तो नहींहर शमे गमें की हो शहेर ये जरूरी तो नहीं निंद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती हैंउन्की आगोश में हो ये जरूरी तो नहीं ---अंजान
आग को खेल पतंगो ने समज रख्खा है
જવાબ આપોકાઢી નાખોसब को अंजाम का हो डर ये जरूरी तो नहीं
उम्र जल्वों में हो बसर ये जरूरी तो नहीं
हर शमे गमें की हो शहेर ये जरूरी तो नहीं
निंद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती हैं
उन्की आगोश में हो ये जरूरी तो नहीं
---अंजान