ગુરુવાર, 10 ઑગસ્ટ, 2017

रोया अंबर




बुंदन बुंदन चिपका पानी जैसे खिल गये मोती
चूपके चूपके रोया अंबर जैसे गिर गये मोती !!
---रेखा शुक्ला 

1 ટિપ્પણી:

  1. आग को खेल पतंगो ने समज रख्खा है

    सब को अंजाम का हो डर ये जरूरी तो नहीं

    उम्र जल्वों में हो बसर ये जरूरी तो नहीं

    हर शमे गमें की हो शहेर ये जरूरी तो नहीं

    निंद तो दर्द के बिस्तर पर भी आ सकती हैं

    उन्की आगोश में हो ये जरूरी तो नहीं

    ---अंजान

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