શુક્રવાર, 23 જાન્યુઆરી, 2015

हया और मुस्कान


अब कब कहां कैसे मिलोगे
ये वक्त का है दरिया 
कित्ना करोगे याद 
ये राझ हैं नजारा 
कितना सताओगे रोज
ये बेहते आंसु
ये रोज रोज की बातें
खुलके न मिलने की शिकायते
कितना कहोगे? तुम कोन हो
हो जिस्म से जुदा
जान से जुडे हो
कैसे कहुं... कैसे भूलुं 
क्या क्या भूलु ...वो तन्हांई 
वो पेहचान ....बो नजारें
वो बेनाम शहेर .....वो हम-दम
वो हर गम...
पास पास... हया और मुस्कान
साथ साथ... कब मिले ?कब बिछडे ?
आसपास ...!!
----रेखा शुक्ला

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