अपनी उंगली को छूती हुं तो लगता हैं "मां" मे तुजको छूती हुं
भूले से गर आंऊ याद तो तज से लिपट को सोती थी "मां" मे तुजको छूती हुं
---रेखा शुक्ला
किस बहाने से भूलाया हैं तुम्हैं
कितना रूलाओगे बुलाया है तुम्है
तडपता लम्हां फांसला बढाये फिर ले जाये उडाके !
मौसम मौसम लम्हां लम्हां रंग हैं ये प्यारदा
आग लगाये फिर जलाये अंजाना दर्द ये प्यारदा
----रेखा शुक्ला
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