और बोये रिम-झिम सावन बरखां के नजारों का आंगन
छोड के प्रेम की गली छोटा सा घर सजा फुलोका आंगन
नैना मेरा "झील" जो कहा था तेरा करे दर्शन मेरा आंगन
----रेखा शुक्ला
पी गये सागर को मुस्कुराके...आंखे न करेंगे नम
वादा किया
वादा किया
पर समजते है के ना हमे कोई गम है लो फिर वादा दिया !!
---रेखा शुक्ला
अपनी तो हर आह एक तुफान है...क्या करे वो जानकर अन्जान है उपरवाला जान कर अन्जान है..
मेरे दिल से सितमगर तुने अरछी दिललगी कि है के अप्ने दोस्त बनके दुश्मनी कि है..मेरे दुश्मन तु मेरी दोस्ती को तरसे...मुजे गमे देने वाले तु खुशी को तरसे
भूला देती हैं ये अंग्रेजी दुनिया...
परदेशी क्या हो गये....बदल गया जमाना...
जनाजा ना बद्ला हमने ओढा अपना देश ....
हाये कैसे भूलाये भीनी सुगंध बारिश के बाद ...!!
---रेखा शुक्ला
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