रोशनी के बाद ही वापस आना
सुरज ढल गया तब कामसे आया
शाम को गले लगाये सोया साया
ये लगाव ये धुप-छांवका द्बे पांव आना
ये तेज भागती रफ्तार का स्पीड ब्रेक होना
ताश के पत्तेके महल का पतझड पन्ने सा गिरना
हां ठहेरी हुं मैं एक आश लिये के बसंत बहार तुम आ जाना
कबसे हैं खुशी ठेहरी एक पांव पे
अब तो करीब आही जाना
---रेखा शुक्ला
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