બુધવાર, 12 જૂન, 2019

' रीम ओफ ध वर्लड' बदली

' रीम ओफ ध वर्लड' बदली

पानी के सहारे चलने वालों को मोंजो से भागना नहीं चाहिये
सोच सोची बात का एहसास इम्तहान न लीजे पास चाहिये

कहां फस गई जान जन्नतकी मरम्मत में पिया खास चाहिये
' रीम ओफ ध वर्लड' मे करवटें संभल के बदली खास चाहिये

बिक गया जब सपनों का महेल इन्सान हैं तब से खोया खोया
सितारों को पायल की घूंघरुं पहेना दिया, दिल हैं खोया खोया

मुर्ख हैं प्यास उफ अल्लाह कहां से कहां ले आया प्यासा खोया
जिंदगीका ये झमेला, रात तो रात दिन भी हैं प्यासा ही सोया

मेरा यार यार मुजमें समाया ईश, संसारसे ऊपर हैं खोया खोया
कैसा हैं ये प्यार ? प्यार समजाये समजाया नही जाता खोया

----रेखा शुक्ला

मेरे प्यारे अब्बु,
आप जल्दी बापस आ जाओ. लोग कहेते हैं आप अल्लाह के पास हो...उसे खैरातमे मुजे वापस बुलालो ना तो कुछ काम बने. अम्मी मेरे सामने भी नहीं देखती. अब्बु जैसा गाना कोई सुनाता ही नहीं अब्बु की तरहा कोई प्यार भी नहीं करता. और आज अम्मी फिरसे पुलिस स्टेशन गई हैं..आपको ढुंढने आप उन्हैं भेज दो अल्लाह. मैं अब अब्बु के सिवा नहीं रेह सकता. जानता हुं अल्लाह तेरी अदालत तेरा इन्साफ...पर ये कैसा न्याय हैं ? मैं अब्बु को बोलना चाहता हुं कि अब मैं जल्दी बडां बन जाउंगा और कभी नहीं सताउंगा, और कुछ नहीं मांगुगा.. अब्बु को वापस भेजदो..!!
--- अब्बु का " हबीब "

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