સોમવાર, 21 સપ્ટેમ્બર, 2015

महेंक हैं....

अमरत रस और मधुशाला सब जाणे प्रीत रंग गुलाबी, 
जहन में मिल गया, जी छन्नी कर दिया, 
सूरो का शरबत छलका दिया, 
महेर महेर महेरबान कर गया
...रेखा शुक्ला




आंख मे सपन और श्वास मे महेंक हैं
तुम जब आवे मचा हंगामा खुश्बुमे हैं

----रेखा शुक्ला

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