आंसु उभर आये.................!!! चलती बोलती तस्वीर गर पुछे, इन्सान के जान का मोल बताये मकसद तेज कदम राहे, ख्वाहिशे कोशिश संजिदा किंमती बनाये नाराजगी अंदाजे बयान हो तो भी, गुलमहोर की गलियां बनाये सफर तन्हा चौबारे पे चुडी की दुकान, खडकी ये सवालात जताये छोटी बकरी के संग मासुम टटोले, जवाब चरागे किताब ले आये तिनकों के नशेमन तक, हुं हुं करे दिल फिर अखियों से बरसाये बिखरी पडी हुई गुफ्तगु, रोशनी की छडी मेरे अपनेकी पेहचान लाये पथ्थर की हवेली से कहीं दुर, शिशो के घरोंदो के बाजु मुड के जाये नजर बचाके आज भी वो देहाती मोड, तलाशे आंसुमे बेह के जाये लिखुं वो पहुंचे दिल तक दिन गुजरे, जैसे अजनबी हुं यहा आये वतन की तलाश मैं अपने ही घर मे, जैसे एहसान उतारा जाये बहोत अब ना सोचना देखो कही, मेरे संग तेरे आंसु उभर आये ----रेखा शुक्ला
કાલ્પનિક દુનિયામાંથી વસ્તવિકતાની ધરતી પર રૂમઝુમ ચાલે ચાલતી મારી કવિતા નવોઢા બની શરમાય છે....
બુધવાર, 30 સપ્ટેમ્બર, 2015
आंसु उभर आये.................!!!
आंसु उभर आये.................!!! चलती बोलती तस्वीर गर पुछे, इन्सान के जान का मोल बताये मकसद तेज कदम राहे, ख्वाहिशे कोशिश संजिदा किंमती बनाये नाराजगी अंदाजे बयान हो तो भी, गुलमहोर की गलियां बनाये सफर तन्हा चौबारे पे चुडी की दुकान, खडकी ये सवालात जताये छोटी बकरी के संग मासुम टटोले, जवाब चरागे किताब ले आये तिनकों के नशेमन तक, हुं हुं करे दिल फिर अखियों से बरसाये बिखरी पडी हुई गुफ्तगु, रोशनी की छडी मेरे अपनेकी पेहचान लाये पथ्थर की हवेली से कहीं दुर, शिशो के घरोंदो के बाजु मुड के जाये नजर बचाके आज भी वो देहाती मोड, तलाशे आंसुमे बेह के जाये लिखुं वो पहुंचे दिल तक दिन गुजरे, जैसे अजनबी हुं यहा आये वतन की तलाश मैं अपने ही घर मे, जैसे एहसान उतारा जाये बहोत अब ना सोचना देखो कही, मेरे संग तेरे आंसु उभर आये ----रेखा शुक्ला
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