ना गोबर मिट्टीका चुल्हा बस घर साफ धूला
आम नीम की डाली पर अब नहीं मिलता झुला
मौसम सिरफिरा पागल वक्त भी लंगडा लूला
गुडियां गुड्डु जानते नहीं हैं क्या होता है खेलना
गर जिंदगी होती बसमे हुम नदी कंधे पे ले आते ना
कुद्कुद चिल्लाते सभी जनोकां परिचय करवाते ना
---रेखा शुक्ला
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