तसल्लियां करे बेकरार...जब पलटु उम्मींद दे जाये
लफ्जों अश्क बन गये ... लो एक और किताब बन जाये !!
जान लुंटा दुंगी हां मुज जैसी महोब्बत वो कर जाये...!
दर्द और लफ्जं चुप हो जाये..जब सिमट लेंगे लौट आये
मैं ना हुं कोई पहेली पर वोही सुलजाये...सताये..मनाये
हर दम, हर गम, हर सांस "महेश " पुकार बन जाये..!
---रेखा शुक्ला
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