રવિવાર, 27 સપ્ટેમ્બર, 2015

केहती हैं माईं......

केहती हैं माईं, अबला नही हुं
दर्द  भी हुं, सुनले पुकार भी हुं

शान भी हुं, मानले आन भी हुं
शर्म कर्म धर्म, हां इमान भी हुं

राझ भी हुं, नटखटकी जान हुं
सूखी आंखका. गीला अश्क हुं

सच ना बतांऊ पर. चूपभी ना हुं
वादा हैं भाऊ, अपून साथ ना हुं
--------रेखा शुक्ला

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