બુધવાર, 6 ઑગસ્ટ, 2014

मुहब्बतका दामन


मुहब्बतका दामन लूंट गया 
हाये रिश्तोंसे फिर घूंट गया
अंजामे लय बन्ती अरमानोंकी
पायल गर तूटती ना पांव की
सीने मे तडपते प्यार छूपाकर
रंग मे जीने ले दे प्यास अगर
रात क्यो न हो कितनी मतवाली 
सुबहां के आलम मैं तो खलबली
नज्मों मे देख छलके है मस्ती 
बनेंगे देख फिर अफसाने हस्ती
युं ना हमे सताया करो तूट गये
कांचके हैं, कहीं बिखर ना जाये
----रेखा शुक्ला (शिकागो)

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