શનિવાર, 28 જૂન, 2014

उफ्फ ये ईश..........................!!!

उफ्फ ये ईश..........................!!!

अपना हैं के अजनबी बोले दिल मालुम नहीं- मालुम नहीं
बिना एक पल ना गुजरता फिरभी मालुम नहीं-मालुम नहीं
फिर भी जी ली जिंदगी खास कही मालुम नहीं-मालुम नहीं
मुस्कुराने की आदत फिर रोती पैर मालुम नहीं-मालुम नहीं
छिपा के दर्द दिखाये घांव गमो के मालुम नहीं-मालुम नहीं
जबान केहती कुछ कि आंखे बोले याद मालुम नहीं-मालुम नहीं
पैरों के निशान मुलाकात जजबां ये उल्फत मालुम नहीं-मालुम नहीं
बेबसी पुरानी राहत लाई आंहे बंदा नवाझी मालुम नहीं-मालुम नहीं
जमाने की हिचकियां हैं की तीखी मिरचियां मालुम नहीं-मालुम नहीं
शबनब की चूभन पांव मे छाले उफ्फ ये ईश मालुम नहीं-मालुम नहीं
-----रेखा शुक्ला 

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