રવિવાર, 31 માર્ચ, 2013

अडी हुं मै


पुत्ल सी खडी हुं मै
स्वप्न से जडी हुं मै
खोके मिल पडी हुं मै
कभी तो यु रडी हुं मै
नजदीकसे अडी हुं मै
दुरियां से लडी हुं मै
---रेखा शुक्ला

1 ટિપ્પણી:

  1. 'खो के मिल पडी हूं मैं' और 'दूरियों से लडी हूं मैं' आपके सकारात्मक दृष्टिकोण को दिखाता है। पर मैं आपको बता दूं वर्तमान में स्त्री जबरदस्त ताकत के साथ खडी है अतः उसे पुतले-सा खडा नहीं रहना चाहिए और नहीं रडना (रोना) चाहिए। शायद आप मेरे विचारों से असहमति दर्शाएंगी। पर आपकी भावना एवं कविता का संदेश पवित्र है आपने विशिष्ट लम्हों के साथ अभिव्यक्ति की है मैं समझ सकता हूं।

    જવાબ આપોકાઢી નાખો