બુધવાર, 20 માર્ચ, 2013

बसंत


आये बसंत उठे दिलमे आरझु
उदास नजरे ढुंढे फिर जुस्तजु 
धडक्ती फिझा मे खुली झुल्फे
नगमाये दिल जाग उठे बदनमे
झनकार की सी थरथरी है तनमे
मौजे अरमां बनके तुफा लबोपे
लाते बारीश और तितलियां घरमे
झोको से जलती चले फुरवाई मे
---रेखा शुक्ला

1 ટિપ્પણી:

  1. पहाडो को चंचल किरन चुमती है
    हवा हर नदी का बदन चुमती है
    ---रेखा शुक्ला

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