हैं अपनो ने मारा ईमान धरम शरम करम और भरम के लिये
और फिर दरार बांग पुकार हरेक के हिस्से मे लहु करार लिये
---रेखा शुक्ला
ईश्वर अल्लाह जित्ने भी है रब
नूर तेरा तुज मे ही सब हैं रब !
---रेखा शुक्ला
डिस्पोझेबल इन्कम बने
तो, घर बनता है सवरता है और बिगडता भी है.
कुछ लोगों से रूबरू होने का अंदाजे एहसास ही कुछ अलग होता हैं
फिर वो जान अपने पास नहीं रेहता वो मेरे पास कैसे होगा हैं न ?
जिन्दगी की गगरिया पे बैठा कौआं दिन-रात कंकर डाल डाल उम्र पी रहा
और मनुष्य समजे वो जी रहा हैं
मुजे अपने जिने का हक्क चाहिये. कोइ बहारसे जली थी कोई अन्दर से
हर रंग प्यार के चूरा कर जिने को केहते हैं
शोहर के नाम के जज
मुजे तन्हाई सजाये मौत फरमाइये
मै अम्मी जैसे बहादूर नहीं हुं
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